कश्मीर, इंसाफ और इंसानियत
हम क्या चाहते?
आजादी!
आजादी का मतलब क्या?
ला इलाहा इल्लल ला।
जागो जागो, सुबह हुई, रूस ने बाजी हारी है, हिंद पर लर्जन तारे हैं, अब कश्मीर की बारी है।
ऐ जालिमों, ऐ काफिरों, कश्मीर हमारा है।
हमें चाहिए निजाम- ए- मुस्तफा।
रालिव, गालिव, चालिव (हमारे साथ मिल जाओ, या मरो, या भाग जाओ)
अलम- ए- यहूद उखाडेंगे,
कुफ्र के पर्दे फाडेंगे
दीन के झंडे गाडेंगे
जागो जागो!!
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ऊपर लिखे गए सेक्युलर तराने कश्मीर की हर मस्जिद से जिस दिन लगने शुरू हुए, वो आज की ही मनहूस तारीख थी - 19 नवंबर। सिर्फ 32 साल ही बीते हैं, जब एक पूरी की पूरी नस्ल मिटा दी गई, हजारों की हत्या हुई, सैकड़ों को रेप किया गया, 5 लाख लोग बेघर किये गए।
सोचिये, कितने मुसलमान उस के बाद दुखी हुए?
सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि पुराना केस है, सुनवाई नहीं हो सकती।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके जिम्मेदारों में एक, मानवता के हत्यारे, पशुवत आतंकवादी यासीन मलिक को साथ बिठाकर शाही भोज कराया।
देश के सबसे बड़े दुश्मनों में एक सैयद सलाहुद्दीन के बेटों को वो सरकारी नौकरियां दीं गई जिनके लिए आप और आपके लोग लाखों देने को तैयार हैं।
आज भी मीडिया से लेकर फिल्म वाले झुठ परोस रहे हैं शिकारा जैसी फिल्म बना कर हमारी आँखो में धूल झोंक रहे हैं।
यही लोग फैज़ अहमद की नज्म की उन पंक्तियों को जस्टिफाई कर जाते हैं जिसमें वो कहता है:-
"सब बुत उठवाये जाएंगे" या "बस नाम रहेगा अल्लाह का"
यही लोग कश्मीर फ़ाइल्स को नफरत फैलाने वाली फिल्म और उसको प्रमोट करने वाले लोगों को नफरती बताते रहे, जबकि हकीकत में ये लोग नफरती हैं, नफरतें बहती हैं इनकी रगों में! सिवाय तथ्यों के कुछ भी नहीं था उस फिल्म में, खड़े तेज मसाले तीखे लगते हैं, वही थी कश्मीर फ़ाइल्स! किसी के गले में तो किसी के किसी अन्य अंग विशेष में मिर्ची लगा गई, देखकर रोया हर कोई।
हमने एक पूरी नस्ल का नरसंहार होते देखा, वही फौज, वही पुलिस, वही गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, कोर्ट - सब फेक, सब फ्रौड।
उन लोगों को मारने वाला बित्ता कराते की बीवी को इसी सरकार में उच्च पद पर प्रतिस्थापित किया गया। एक आतंकवादी की पत्नी, देश में सरकारी अफसर है??
ये अगर मजाक नहीं लगता आपको तो आपके अंदर कुछ भी बचा नहीं है।
वैसे बहुत पुरानी बात नहीं है, सिर्फ तीस साल बीते हैं।
सवाल हजारों हैं, जवाब किसी के पास नहीं और कुसूरवार हर वो शख्स है जो आज खुद को सफेदपोश, ईलीट और सिविलाइज्ड दिखा रहा है। इन सफेदपोश बदमाशों में एक नाम ए. एस. दुल्लत का भी है जो पाकिस्तानी खूफिया एजेंसी, आईएसआई के बेहद करीब थे, पाकिस्तानी हीरोइन इनकी शामें गुलज़ार करती थीं तो ये इंटेलेक्चुअल दिखने के लिए आईएसआई चीफ के साथ किताब लिख रहे थे। उस समय ये आदमी रिसर्च एंड अनालिसिस विंग यानी रॉ का चीफ था, जब कश्मीर में एक्सोडस हो रहा था।
गुनाह हो चुका है, गुनाहगार सामने है, अय्याशी काट रहा है, आम आदमी को खाने के वांदे हैं, सरकार मजे में है, सुप्रीम कोर्ट के जज साब लोग आई ए एस को 'एप्रोप्रिएट' कपड़े ना पहनने पर हडका रहे हैं। लोग भूल चुके हैं।
श्श् श श श....... कुछ कहना मत, इंसाफ, इंसान और कश्मीरियत - सब सो रहे हैं!!
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