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लीजेंडरी सारुख भिया ने इस सदी की शुरुआत में ही ढोल पीट कर एक बात कही थी, "दुनियों में कितनी हैं नफ़रतें?" मरहूम दिव्या भारती ने इसका जवाब देते हुए पहले ही कह दिया था कि हर सवाल का जवाब नहीं मिल सकता। उन्हीं अनकहे, अनसुने, बेढंगे से सवालों के जवाबों की खोज में कभी कभी लिख लेते हैं। टेढ़ा मेढ़ा ही सही लेकिन अपनी फ्रस्ट्रेटियाई जिनगी में कुछ छींटे बारिश के पड़ जाते हैं। और जो पुराना स्टेटस ज्यों का त्यों है। ज़िंदगी कल भी बेरंग थी, आज बेगैरत भी है। Best political blogs in hindi